Saturday, May 10, 2014

“हम खद्दर नहीं पहनेंगे!”

यह कहना था ढाई साल की बरखा का... क्यूँ ? नहीं पता, बस ज़िद थी... आज भी उसका ऐसा ही है :D जिस चीज़ के पीछे पड़ जाती है... पूरा किये बगैर मानती नहीं है... भगवान की दया है कि अब उसकी प्रायोरिटीज़ सही हैं... नहीं, हम दोनों ने बड़े हो कर, बहुत खादी के कुर्ते पहने. मम्मी धुलाते-धुलाते थक जातीं थीं... बहुत भारी होते थे, मेड कम्पलेन करती थी... उस पर, रंग भी जाता था, तो मम्मी अलग से भिगवातीं थीं... वो भी बहुत पैशनेट होतीं थीं. हर चीज़ के लिये... मतलब जब तक शरीर साथ देता था... उसके बाद पूर्वजों से पूजा-पाठ के कर्म-काण्ड के लिये प्रार्थना होती थी, ‘सही’ काम कराने के लिये... काम हो जाता था... तो हार मान लेतीं थीं, “करण वारो ऊव्हो”...



खैर, यह तसवीर है, बरखा के उसी मसूरी ट्रिप की... मम्मी, पापा के साथ... और इस समय, खानदान भर की चहेती बरखा, एक बढ़िया ‘होम-मेकर’ का रोल निभाने में पूरे पैशन से जुटी हुई है... उसके घर-वाले भी उतने ही ज़िद्दी हैं :D

Friday, May 9, 2014

vaise hi, ya ho sakta hai, yahi sabse zaroori ho...

जा रहे हैं आज शाम मेडिटेशन के लिये, सोचने लग गये, कि स्क्रिप्ट में कितना काम बाकी है, पर काम भी तो ईमानदारी और प्रेम से ही होना चाहिये न (नहीं तो कितनी लाईने काटनी पर गईं)... जो है, (सामने) वही पर्पस हो तो? यही तो ओशो कहते हैं, यही शायद गीता में भी लिखा है? मतलब, कभी-कभी आप दूर की सोचते हैं और जो सामने है, वह चूँकि पहले का सोचा हुआ था, अब सामने आया है, तो यही, इस समय ‘डेस्टिनी’ है... है ना? इस समय भले ही फ्रिव्लस् लगे, जी तो आप लाइट-हार्टेड दिनों के लिये ही रहे हैं... स्ट्रगल तो आप महान बनने के लिये करते हैं, दूसरों की देखा-देखी... मज़े में रहेंगे तो शायद मज़े से काम हो भी जाये... योग... To submit to what is, in this moment is the work… rest will happen through me or rather, my body governed by source energy, when I allow it. तो ऐसा है, कि रात के लिये भी इडली-सांभर बन रहा है... कपड़े धुल गये हैं... सर में दर्द तो कर लिया, पर सही हो जायेगा... नहा लेंगे, खा लेंगे, फिर मज़े से जाया जायेगा 